Ad Code

Responsive Advertisement

Fever



प्रिय बुख़ार,


मेहमान बन कर आए थे, मालिक बन गए हो। आ गए, ठीक है, मगर जाने की कोई जल्दी नहीं दिखती, यह ठीक नहीं है। ऐसा लगता है कि तुमने अपना सामान मेरे शरीर में रख दिया है। सुबह किसी और के घर चले जाते हो और दोपहर तक फिर मेरे शरीर में लौट आते हो। मुझे लगता है कि मेहमानों को अपना समय पहचानना चाहिए। तीन-चार दिन बाद जब वही भोजन दोबारा मिलने लगे, उसकी वेरायटी कम हो जाए, तो इसका मतलब है कि तुम्हारे जाने के दिन आ गए हैं। 


चले जाओ। इतना तपा कर तुम्हें क्या मिलेगा? झूठमूठ का क्रोसिन का धंधा चल रहा है। दिमाग़ की हालत ऐसी कर दी है कि हर वक्त लेक्चर सुनना पड़ रहा है कि थर्मामीटर कैसे रखना है। कहां रखना है। इतनी चीज़ें नहीं संभाली जा रही हैं।एक अच्छे भले खुशहाल तन और मन में तुमने काफी तबाही मचा दी है। मौसम का अहसास जिन तंतुओं से होता था, वहां तुमने जाम कर दिया है। आज सुबह की हवा कितनी अच्छी है लेकिन मैं चादर में हूं। तुम्हारे साथ जो खांसी आई है, उसका कुछ पता ही नहीं चलता है। मेरे फेफड़ों को मोटरसाइकिल समझती है। दिन भर किक मारती रहती है। हर किक के साथ पूरा शरीर आगे-पीछे होने लगता है।जैसे स्टार्ट होते ही पूरी बस हिल जाती है। 


तो अब जाओ। ताकि मैं बुख़ार मुक्त जीवन का अनुभव प्राप्त कर सकूं। तुम चले गए हो, लेकिन दरवाज़े से जाने के बाद खिड़की से क्यों लौट आ रहे हो। जाओ। आज मत आना। 

तुम्हारा

एक मरीज़


Post a Comment

0 Comments